23 अक्टूबर 2014

हिंसा का पाठ

प्रेम सिंह
जनसत्ता, 17 अक्तूबर, 2014

आनंद विहार इलाके के बाहुबली इंक्लेव पार्क में सुबह-शाम घूमने जाना होता है। वहां हर रोज आरएसएस, यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा लगती है, जिसमें दो से चार लोग होते हैं। साल में एक-दो बार होने वाले बड़े कार्यक्रम में ज्यादा लोग आते हैं। उस दिन वहां रोजाना आने वाले लोगों की पूछ नहीं होती। बड़े कार्यक्रम में कुछ बड़े लोग भी निक्कर पहन कर आते हैं। भाजपानीत राजग सरकार के समय हमने जाना कि कई बड़े अधिकारी रहे हमारे परिचित, जो अंगरेजी और अमेरिका से नीचे नहीं उतरते और जिनके लड़के-लड़कियां दिन-रात अमेरिका जाने की जुगत में रहते हैं, पुराने स्वयंसेवक हैं।
इस बार आरएसएस का विजयादशमी पर्व पर पूर्वी दिल्ली जिले का कार्यक्रम बाहुबली इंक्लेव पार्क में आयोजित हुआ। पूरे इलाके में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बैनर लगाए ग्ए थे, जिनमें इलाके के भाजपा नेताओं के नाम लिखे थे। सुबह करीब डेढ़-दो सौ स्वयंसेवक गणवेश में कार्यक्रम में आए। उनमें छोटे बच्चे और युवक भी शामिल थे। सबके पास लाठी थी। कुछ लोग लाठी के स्थान पर तलवार और बंदूक लेकर आए थे। दशहरा को शस्त्र पूजा होती है। मंच के साथ आरएसएस के संस्थापक डॉ हेडगेवार और हिंदुत्व के प्रमुख प्रणेता गुरु गोलवलकर की बड़ी तस्वीरें लगी थीं।
माइक की आवाज पूरे पार्क और उसके बाहर तक अच्छी तरह सुनी जा सकती थी। जिन सज्जन का मुख्य प्रवचन था, उन्होंने आरएसएस की लाइन परहिंदुत्वकी महिमा पर विस्तृत भाषण दिया। सतयुग से लेकर द्वापर और फिर कलियुग काइतिहासबताते हुए प्रतिपादित किया कि कलियुग में संघ-शक्ति से ही हिंदुत्व की रक्षा की जा सकती है। इसीलिए डॉक्टर साहब ने नवासी साल पहले आज ही के दिन आरएसएस की स्थापना की। सभी जानते हैं डॉ हेडगेवार का उपनिवेशवादी गुलामी से विरोध नहीं था और गोलवलकर ने भारत के अल्पसंख्यकों के साथ वही बर्ताव करने की सीख दी है जो हिटलर ने यहूदियों के साथ किया था। लेकिन इस सच्चाई का जिक्र वक्ता ने नहीं किया। इस सच्चाई को छिपाने के लिए ही संघ की सारी शाखाएं और प्रवचन चलते हैं। वाजपेयी सरकार के समय नवउदारवादी नीतियों को लेकर आरएसएस ने जरूर हलकी हुज्जत की थी, लेकिन मोदी सरकार में शायद यह अंतिम रूप से तय हो गया है कि आरएसएस को उपनिवेशवाद की तरह मौजूदा नवसाम्राज्यवाद से भी कोई विरोध नहीं है।
खैर, जैसा कि घोषणा से पता चला, अध्यक्षता एक कॉलेज के कोई शिक्षक कर रहे थे। उन्होंने अपने संक्षिप्त भाषण में हिंसा सीखने और करने की जरूरत पर बल दिया। उनका तर्क था कि केवल अहिंसा से काम नहीं चल सकता। यानी हिंदू राष्ट्र की स्थापना नहीं हो सकती; जरूरत पड़ने पर अहिंसा के पुजारी कावधकरने के लिए तत्पर रहना चाहिए! जाहिर है, वहां उपस्थित बच्चों और युवाओं को वह सीख दी गई थी।
बाहुबली इंक्लेव और उसके साथ ऋषभ विहार जैन समाज की कॉलोनियां हैं। उन्हें धर्म नगरी का नाम दिया गया है। पूरा साल, खासतौर पर चतुर्मास में जब प्रसिद्ध जैन मुनि यहां आते हैं, जैन धर्म के कई कार्यक्रम होते रहते हैं। उस दिन आरएसएस के कार्यक्रम में कई जैन गणवेश में शामिल थे। लेकिनअहिंसा परमो धर्ममें विश्वास करने वाले जैन धर्म के उन अनुयायियों में से किसी ने अध्यक्ष के कथन पर एतराज नहीं उठाया। उन्हें कम से कम पूछना चाहिए था कि चौरतफा अनेक तरह की हिंसा से घिरी दुनिया को और हिंसा भला क्यों चाहिए! कार्यक्रम के अंत में उद्घोषक ने नगर निगम और दिल्ली पुलिस का धन्यवाद किया। धार्मिक त्योहार के दिन सार्वजनिक तौर पर की गई हिंसा सीखने और करने की घोषणा में पुलिस और नागरिक प्रशासन को कुछ भी अनुचित नहीं लगा। फर्ज कीजिए कि कोई अतिवादी राजनीतिक विचारधारा में विश्वास करने वाला व्यक्ति, या कोई अल्पसंख्यक सार्वजनिक भाषण में हिंसा की वकालत करता तो क्या पुलिस और नागरिक प्रशासन ऐसे ही जाने देते?
यह वाकयास्वच्छ भारतअभियान के अगले दिन का है। कवायद के बाद स्वयंसेवकों ने जलपान किया और कूड़ा वहीं बिखरा छोड़ कर चले गए। अगले दिन सुबह, रोजाना आने वाले स्वयंसेवकों ने वहां कुछ कूड़ा उठा कर पास में रखे कूड़ेदान में डाला और बाकी धरती पर ढेर लगा दिया। शायद पार्क में सैर करने वाले लोगों की शिकायत पर, या अपनी समझदारी से!


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