अपूर्वानंद
जनसत्ता, 29 अगस्त, 2014
भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई ने आधिकारिक प्रस्ताव में ‘लव-जेहाद’ का जिक्र नहीं किया है। यह बताया गया कि ऐसा उसने प्रधानमंत्री और अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के संकेत पर किया। इससे पार्टी को सुविधा हो न हो, उसके उदारपंथी, अंगरेजीभाषी, आधुनिक पैरोकारों को राहत अवश्य मिली है। अब जब भी ‘लव-जेहाद’ का जिक्र आएगा, वे कह सकेंगे कि यह भारतीय जनता पार्टी के हाशिये के तत्त्वों का हुड़दंग भर है और इसे विकासपुरुष प्रधानमंत्री और नए राष्ट्रपुरुष भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पसंद नहीं करते। वे विकास में देरी पर अपनी चिंता जताते हुए अंतिम वाक्यांशों में दबे स्वर से शिकायत कर सकेंगे कि इन ‘हड़बड़ियों’ पर वे जरा लगाम लगाएं, क्योंकि इससे उनकी धवल विकासमान छवि धूमिल होती है।
गोरखपुर के ख्यात महंत योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में प्रचार की कमान थमाने की व्याख्या भी कर ली जा सकती है। आखिर चुनाव में मत एकत्र करने के लिए मत-विभाजन भी करना पड़ता है। इसमें कटुता भी फैल सकती है। लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री का व्याख्यान सुन कर एक उदार अंगरेजी दैनिक के संपादक ने गदगद भाव से कहा था कि छप्पन इंच के सीने से चुनाव अभियान जीतने के बाद हमें एक सौ छप्पन इंच का दिल मिला है। तब से वह दिल फूलता ही जा रहा है और खतरा है कि भारत ही नहीं, संपूर्ण विश्व कहीं उसमें न समा जाए!
बुरा हो इंटरनेट का कि किसी विभाजनकारी तत्त्व ने आदित्यनाथ की एक जनसभा का वीडियो ऊपर कर प्रसारित कर दिया और कुछ टेलीविजन चैनल बिना फोरेंसिक जांच कराए उसे दिखाने लगे! एक तो यह बहुत पुराना, यानी 2009 का है और इसलिए प्रासंगिक नहीं! दूसरे, वह वक्त आज के समावेशी समय के समान नहीं था! उस चुनावी जनसभा में आदित्यनाथ ललकार कर कहते हैं कि अगर वे हमारी एक लड़की का धर्मांतरण करेंगे तो हम उनकी सौ लड़कियों को हिंदू बनाएंगे। इसमें तर्क संबंधी उलझन है। यानी योगी को धर्मांतरण मात्र से परेशानी है या सिर्फ हिंदुओं के, वह भी हिंदू लड़कियों के अन्य धर्मों में जाने से? अगर ‘विधर्मियों’ को हिंदू बनाया जा सकता है, तो यह बदले की कार्रवाई के तौर पर ही क्यों, एक सतत प्रक्रिया क्यों नहीं?
फिर उसी भाषण में वे कहते हैं कि हम लोगों की शुद्धि करेंगे और उन्हें हिंदू बना लेंगे। लेकिन योगी को याद है कि हिंदू होने के लिए किसी जाति का सदस्य होना अनिवार्य है। वे इन संभावित नवागंतुक हिंदुओं को आश्वस्त करते हैं कि उनके लिए वे अलग जाति का निर्माण कर देंगे! इससे वर्तमान जातियों को भी तसल्ली होगी कि उन्हीं में भीड़ नहीं बढ़ेगी और उनके अधिकारों का बंटवारा करने और लोग नहीं आ जाएंगे! लेकिन यह नई जाति आरक्षण मांगने लगी तो?
बहरहाल! प्रधानमंत्री ‘लव-जिहाद’ शब्द का उच्चारण कभी नहीं करेंगे और उसकी जरूरत भी नहीं, क्योंकि हिंदी ही नहीं, अंगरेजी संचार माध्यमों ने इस पद को अपना लिया है और इसका प्रचार बिना हर्र-फिटकरी के हो रहा है।
आदित्यनाथ के वीडियो का समय 2009 का है। यह लोकसभा चुनाव का वर्ष था। इसमें भी मत-संग्रह के लिए विभाजन आवश्यक और वैध था। यह वह वर्ष है जब ‘लव-जेहाद’ पद सुदूर दक्षिण यानी केरल और समीपवर्ती कर्नाटक में लोकप्रिय हो उठा। दिसंबर, 2009 में ‘काफिला’ के एक लेख में जे. देविका ने इस विवाद का विश्लेषण किया। केरल और कर्नाटक में न्यायालयों ने अधिकारियों को इसकी जांच करने को कहा कि क्या ‘भोली-भाली युवतियों’ को शादी के नाम पर ‘फुसला कर’ उनका इस्लाम में ‘जबरन ‘धर्मांतरण’ कराया जा रहा है!
जब केंद्र सरकार और स्थानीय अधिकारियों ने ऐसी किसी संगठित षड्यंत्रकारी मुहिम के होने से इनकार किया तो न्यायालय ने उनके निष्कर्ष पर ही शक जाहिर किया! उस साल अक्तूबर में ऐसा ही एक मामला बना कर दो मुसलमान नौजवानों को गिरफ्तार किया गया था। उन्हें न्यायालय ने कोई सबूत न मिलने पर भी जेल भेजने का हुक्म सुनाया और लड़की को उसके मां-बाप को वापस करने का आदेश दिया था।
देविका बताती हैं कि इस प्रसंग में हिंदू और ईसाई कट््टरपंथियों
ने हाथ मिला लिया था। एक ईसाई धर्मगुरु ने यहां तक कहा (याद रखिए, ‘पहले कसाई, फिर ईसाई’ का खूनी नारा!) कि जान-माल से कहीं अधिक पवित्र है धार्मिक शुचिता।
इसके एक वर्ष पहले केरल की सातवीं कक्षा की एक पाठ्यपुस्तक के एक अंश को लेकर पूरे राज्य में बावेला मच गया था। उस अंश में एक मुसलिम पिता, अनवर राशिद और हिंदू माता लक्ष्मी देवी के अपने पुत्र जीवन के स्कूल में दाखिले के समय स्कूल के हेडमास्टर और मां-पिता की बातचीत दी गई है।
मुसलिम पिता और हिंदू माता के पुत्र का धर्म और जाति क्या लिखी जाए, इसके उत्तर में माता-पिता के यह कहने पर कि धर्म-जाति का खाना खाली छोड़ दिया जाए, क्योंकि जब जीवन बड़ा होगा तो वह खुद अपना धर्म तय करेगा, हेडमास्टर परेशान हो जाता है। इसी पाठ में छात्रों को सारे धर्मों के ग्रंथों को पढ़ने को उत्साहित किया गया और उनके उन अंशों को चिह्नित करने को कहा गया, जो मनुष्यों के बीच प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं।
सारे धार्मिक समूहों ने, जिनमें मुसलमान भी शामिल थे, कहा कि यह पाठ नास्तिकता की शिक्षा देता है और आखिरकार उनके हंगामे के बाद इस संवाद को हटा दिया गया। इस प्रसंग से धार्मिक नेतृत्ववर्ग में अंतर्धार्मिक विवाह से पैदा होने वाली उलझन का पता चलता है और इससे पैदा होने वाली सबसे बड़ी समस्या का: उनसे पैदा होने वाली संतति किस धर्म के खाते में जाएगी?
2007 में गुजरात यात्रा में मुझे एक गुजराती पर्चा हाथ लगा, जो 2006 की दीवाली के मौके पर गुजरात के एक प्रसिद्ध पुरुष बाबू बजरंगी के हस्ताक्षर से जारी किया गया था। पर्चा कहता है: ‘हर घर में एक जिंदा बम है। यह किसी भी पल फट सकता है। यह जिंदा बम कौन है? हमारी पुत्रियां!’ पर्चे में मां-बाप से बेटियों पर नजर रखने को कहा गया है। शुरू में पर्चा इस बात पर अफसोस जाहिर करता है कि धन कमाने के फेरे में हिंदू मां-बाप अपनी बेटियों पर निगाह नहीं रखते, जिससे वे लफंगों और शोहदों के चक्कर में फंस और खराब हो जाती हैं। उन्हें आश्वस्त किया गया है कि अगर उनकी लड़की गायब हो जाती है तो वे बाबू बजरंगी पर भरोसा कर सकते हैं। उनका फोन नंबर और बाकी संपर्क भी पर्चे में है। पर्चे में कहा गया है कि एक कन्या को बचाने से सौ गायों को बचाने का पुण्य मिलता है। अंत में सबका आह्वान किया गया है कि वे बम (बेटी) की हिफाजत शुरू करें।
हमें बताया गया कि गोश्त खाने की वजह से मुसलमान नौजवानों की ‘बॉडी’ ताकतवर बन जाती है और लड़कियां आसानी से उनकी ओर आकर्षित हो जाती हैं। यह भी कहा गया कि मुसलमान नौजवानों को गैराजों से, जो मुसलमान चलाते हैं, मोटरसाइकिलें इसी काम के लिए दी जाती हैं। यह इशारा भी किया गया कि यह एक अंतरराष्ट्रीय इस्लामी षड्यंत्र है और इसके लिए धन बाहर से आ रहा है।
आमतौर पर यह बहुत बुरा माना जाता है कि आपकी कन्या हीन कुल में जाए, परधर्म में उसका जाना तो और भी बुरा है, क्योंकि संतति की संवाहक वही है। यह बात अब पुरानी हो गई है कि औरत की कोख को सामुदायिक संपत्ति माना जाता है, जिसके उपयोग के बारे में अंतिम निर्णय का हक धर्म या समुदाय को होता है। कोख के जरिए ही समुदाय को अशुद्ध किया जा सकता है, इसलिए उसकी रक्षा सबसे जरूरी है।
ठीक एक साल पहले मुजफ्फरनगर में मुसलमानों पर जो हमले हुए, उसके पहले और बाद 2007 के गुजरात, 2009 के केरल और कर्नाटक के ‘लव-जेहाद’ विरोधी अभियान की तरह का बहू-बेटी बचाओ अभियान चलाया गया, जो अब भी जारी है। जाट समुदाय में यह भय बैठाया जा रहा है कि मुसलमान योजनाबद्ध तरीके से उनकी लड़कियों को उनसे छीन रहे हैं। सबसे हाल का मामला मेरठ का था, जिसमें आरोप लगाया गया कि अनेक हिंदू लड़कियों का अपहरण करके उनका धर्मांतरण किया जा रहा है। एक लड़की पेश की गई, जिसके बारे में तकरीबन एक हफ्ते तक अखबार और टेलीविजन चैनल कहते रहे कि उसे जबरन मुसलमान बनाया गया है। बाद में उसने अदालत में कहा कि वह अपनी मर्जी से एक मुसलमान नौजवान के साथ गई थी। मगर पूरा प्रचार फर्जी साबित होने के बाद अखबारों ने माफी मांगना आवश्यक नहीं समझा, न इसकी सुध ली कि जाली इल्जाम के चलते जो मुसलमान नौजवान गिरफ्तार हुए थे, उनका क्या हुआ!
अभी एक हफ्ता पहले मुझे एक ‘आॅडियो-क्लिप’ दी गई, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी किसी महिला-कार्यशाला में एक स्त्री वक्ता के भाषण का अंश था। यह स्पष्ट था कि श्रोता जाट समुदाय की हैं। इसमें वह बड़े शांत तरीके से कह रही थी कि मुसलमानों को चार शादियां करने की छूट है और वे एक हिंदू लड़की को मोहब्बत के जाल में फंसा कर मुसलमान बना लेते हैं और फिर एक-एक मुसलमान दस-दस बच्चे पैदा करता है। हम हिंदू तो दो बच्चों पर ही रुक जाते हैं! उनकी तादाद बढ़ना हिंदुओं के लिए खतरनाक है, क्योंकि वे जहां ज्यादा हैं, हमें मारते हैं। अंत में वह सलाह देती हैं कि हिंदू लड़कियों को सख्त बनना चाहिए, प्रेम-मोहब्बत के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। और हमें जाट, वाल्मीकि आदि न रह कर हिंदू बनना चाहिए।
दिलचस्प है कि एक होने की अपील करते हुए भी प्रशिक्षिका जाति को लेकर कोई भुलावा नहीं रखती: वह साफ-साफ कहती है कि ब्राह्मण में बुद्धि ज्यादा होती है, बनियों में व्यापार-बुद्धि और वाल्मीकियों में (वह कहती हैं, जिन्हें हम चूहड़े-चमार कहते हैं) मेहनत करने की क्षमता अधिक होती है। यहां किसी जाति विहीन हिंदू पहचान का कोई आश्वासन नहीं है। सिर्फ हिंदू नामक पहचान को संख्यात्मक स्तर पर बलवान बनाने के लिए सभी जातियों से कठिन अवसरों पर इसे अपनाने की अपील है। वे कहती हैं कि अगर हम एक हो जाते तो मुजफ्फरनगर में मुसलमानों से लड़ने को जाट अकेले न पड़ते, और भी उन्हें अपना समझ कर साथ आ जाते।
राम जन्मभूमि के मसले की कलई उतरने के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक ऐसा मुद्दा तलाश लिया है, जो दीर्घ-स्थायी है। आने वाले चुनावों में मुसलमानों को हिंदू लड़कियों के अपहर्ता के रूप में चित्रित करके हिंदुओं के भीतर मुसलिम-द्वेष को स्थायी करने की रणनीति कारगर हो सकती है। प्रश्न है किसके लिए?
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