माता के सर पर ताज रहे
मित्रों, ‘स्वाधीन’ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ी
यादों को स्मृति में बनाये रखने और उससे सीख लेने को प्रेरित करता रहा है. इस बात
को ध्यान में रखकर उसने अपने पाठकों के लिए हमेशा शब्दों का पिटारा पेश किया है. 69वें स्वतंत्रता दिवस के
उपलक्ष्य में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े गीतों की एक सीरीज पेश
की जा रही है. इस कड़ी में आज तीसरे दिन माधव शुक्ल का गीत ‘माता के सर पर ताज रहे’ स्वाधीन के पाठकों के लिए पेश है...
माधव शुक्ल
मेरी जां न रहे, मेरा सर न
रहे, समां न रहे, न ये साज रहे.
फकत हिन्द मेरा आजाद रहे,
माता के सर पर ताज रहे..
पेशानी में सोहे तिलक जिसकी,
औ गोद में गांधी विराज रहे.
न ये दाग बदन में सुफेद रहे,
न तो कोढ़ रहे, न ये खाज रहे..
मेरे हिन्दू मुसलमां एक रहें,
भाई-भाई सा रस्मो रिवाज रहे.
मेरे वेद पुराण कुरान रहें,
मेरी पूजा संध्या नमाज रहे..
मेरी टूटी मडैया में राज
रहे, कोई गैर न दस्तंदाज रहे.
मेरी बीन के तार मिले हों
सभी, एक भीनी मधुर आवाज रहे..
ये किसान मेरे खुशहाल रहें,
पूरी हो फसल सुख साज रहे.
मेरे बच्चे वतन में निसार
रहें, मेरी मां-बहिनों में लाज रहे..
मेरी गाय रहे, मेरे बैल
रहें, घर-घर में भरा नाज रहे.
घी-दूध की नदियां बहती
रहें, हरसू आनन्द स्वराज्य रहे..
शर्मा की है चाह खुदा की
कसम, मेरे वाद नफात में याद रहे.
गाढ़े का कफन हो मुझ पै पड़ा,
वन्दे मातरम अलफाज रहे..
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें