स्वाधीनता संघर्ष की परम्पराओं को नयी ऊर्जा देकर चुनौतियों का सामना करें


  • राष्ट्रीय आंदोलन फ्रंट के गुजरात में हुए अधिवेशन में दर्जन भर राज्यों से जुटे लोग
  • स्वाधीनता संघर्ष की परम्पराओं को नयी ऊर्जा देकर चुनौतियों का सामना करने का लिया संकल्प
नई दिल्ली। एक नागरिक होने के नाते देश के प्रति क्या दायित्व होते हैं लोग यह भूल चुके हैं। उन्हें यह दायित्व निभाना होगा। उन्हें गांधी सहित सभी स्वतंत्रता सेनानियों के देश को याद करना होगा। उस दौर के लोगों का देश के प्रति लगाव याद करना होगा। उस समय की अच्छी चीजों को आत्मसात करते हुए मौजूदा समय में देश और समाज के उत्थान के लिए काम करना होगा। लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करने की दिशा में योगदान समय की जरूरत है। राजनीति पर भरोसा कायम करने के लिए सभी देशवासियों को अपनी भूमिका का निर्वहन करना होगा। यह सार है स्वतंत्रता आंदोलन के विचारों के प्रचार-प्रसार को समर्पित संगठन “राष्ट्रीय आंदोलन फ्रंट” के प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन में वक्ताओं के विचारों का।

उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष पीयूष भाई देसाई दीप प्रज्ज्वलित करते हुए
राष्ट्रीय आंदोलन फ्रंट की गुजरात इकाई और गुजरात लोक समिति की ओर से गुजरात विद्यापीठ में आयोजित दो दिवसीय अधिवेशन को पांच सत्रों में विभाजित किया गया था जिसमें 12 राज्यों से पहुंचे संगठन की उच्च सदस्यता प्राप्त कस्टोडियंस के अलावा बड़ी संख्या में अहमदाबाद के लोगों ने प्रतिभागिता की। उद्घाटन सत्र का विषय ‘बापू के पदचिन्हों पर’ था, जिसका मुख्य वक्तव्य दिल्ली से आए प्रख्यात इतिहासकार प्रो. सलिल मिश्र ने ‘भारत का स्वतंत्रता संघर्ष और आज का भारत’ विषय पर केन्द्रित करते हुए कहा कि 1947 से 52 तक के समय को हम एक क्रान्ति के तौर पर देखते हैं। समाज और राजनीति में जितने बदलाव इन वर्षों में हुए उतने उस समय में कभी नहीं हुए। उन्होंने चार विचारों और उनसे जुड़ी संस्थाओं पर अपनी बात केन्द्रित करते हुए कहा कि सोशल ट्रांसफार्मेशन में सरकार जनता की प्रतिनिधि होगी। सबकी सहमति का साझा राष्ट्रवाद होगा। धर्मनिरपेक्षता का पालन करते हुए धर्म की राजनीति नहीं होगी और लोकतंत्र के तहत कोई भी फैसला जनता के सबलीकरण के लिए होगा। लेकिन पिछले 20-30 वर्षों में इन विचारों के तहत देश को काफी कुछ सकारात्मक मिला तो बहुत कुछ नकारात्मक भी। इस समस्या से निबटने के लिए ऊपर बताए गए विचारों को आम लोगों तक पहुँचाने में राष्ट्रीय आंदोलन फ्रंट की ऐतिहासिक भूमिका होनी चाहिए। 

‘भारतीय परंपरा और गांधी’ विषय पर गुजरात पुलिस के डीजीपी (पुलिस रिफार्म) विनोद मल्ल ने कहा कि जब हम बुद्ध से कबीर तक की यात्रा देखते हैं तो गांधी उसमें स्वतः आ जाते हैं। भारतीय जनमानस धर्म परायण है। वामपंथियों ने धर्म को नकार दिया। क्योंकि वह भारतीय समाज के यथार्थ से कटे हुए थे जबकि गांधी भारतीयता और भारतीय समाज को बखूबी पहचानते थे। उन्होंने कहा कि बुद्ध, महावीर, कबीर से लेकर गांधी और उनके बाद तक के समय को देखें तो सर्व धर्म समभाव वाली धर्मनिरपेक्षता हमें सहज ही देखने को मिलेगी जिसे आज के समय में बढाने की जरूरत है। 

उद्घाटन सत्र के दौरान उपस्थित कस्टोडियंस
सामाजिक एवं राजनीतिक चिंतक प्रकाश न. शाह ने ‘भारत आज किस दिशा में’ विषय पर कहा कि गांधी-नेहरू-पटेल ने स्वराज के संघर्ष का नेतृत्व किया। उनके साथ बहुतों ने योगदान दिया पर आज के सत्ताधारी लोग सभी को खत्म कर आगे चलना चाहते हैं। गांधी ने हमेशा शोधन किया लेकिन आज का विमर्श अपनी परंपरा के शोधन में रुचि नहीं रखता। जरूरत इस बात की है कि पुरानी परंपरा की अच्छी चीजें लेते हुए नई इबारत का निर्माण किया जाए। 

अहमदाबाद के प्रमुख व्यवसायी एवं गाँधीवादी पीयूष भाई देसाई ने गांधीजी और अपने दादा के संग-साथ का जिक्र करते हुए कहा कि इस विरासत के कारण ही मैं गांधीवादी कामकाज में रुचि लेना अपना धर्म समझता हूं। काश, यह बात आज के सत्ताधारी नेताओं की समझ में आती तो स्थिति कुछ और ही होती। उन्होंने गांधीजी और अपने दादा साथ में पढ़ने और फिर दक्षिण अफ्रीका प्रवास में साथ काम करें और फिर भारत में उनके आपसी सहयोग की विस्तार से वर्णन करते हुए राष्ट्रीय आन्दोलन फ्रंट को हरसंभव सहायता का वचन दिया। 

चर्चित लेखिका और फ्रंट की संयोजिका डॉ. सुजाता चौधरी ने ‘गांधी के राम’ विषय पर अपनी राय रखते हुए कहा कि भारत मूलतः एक धर्म प्रधान देश है। गांधी का एक महात्मा वाला भी रूप है जिसे आज समाज के सामने लाना जरूरी है। 

फ्रंट के संयोजक व इतिहासकार सौरभ बाजपेयी ने संगठन की थीम ‘देश है तो हम हैं, देश नहीं तो हम कहां’ विषय पर कहा कि गांधी ने लोगों के दिलो-दिमाग से डर निकाल दिया। उन्हें अभय बना दिया। इसी कारण लोग अपनी जान तक कुर्बान करने में नहीं हिचके। उस समय के लोग देश और समाज के प्रति अपने कर्तव्य को लेकर सचेत थे पर दुर्भाग्यवश आज ऐसा नहीं हैं। इसमें बदलाव करते हुए आज यह जिम्मेदारी हम सबको अपने कन्धों पर उठानी होगी। इस सत्र का संचालन अधिवेशन महासचिव एवं गुजरात इकाई की संयोजिका मुदिता विद्रोही ने किया, वहीं फ्रंट के सह-संयोजक मोहम्मद अनस ने संगठन के बारे में विस्तार से अपनी बात रखी। 

तकनीकी सत्र में भविष्य की योजनाओं पर चर्चा
दूसरा सत्र ‘वर्तमान समय की चुनौतियां’ विषय पर था, जिसमें गांधीवादी कार्यकर्ता और फ्रंट की छत्तीसगढ़ इकाई के संयोजक विक्रम सिंघल ने ‘साहस, दुस्साहस और कायरता’ पर बात रखते हुए कहा कि अगर सरकार संवेदनशील नहीं है तो वह साहसी नहीं हो सकती। वैज्ञानिक एवं फ्रंट की महाराष्ट्र इकाई संयोजिका प्रभा मजूमदार ने ‘स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्र का निर्माण’ विषय पर बोलते हुए कहा कि हम नकारात्मक राष्ट्रवाद की तरफ बढ़ रहे हैं। इस तरह का नकारात्मक राष्ट्रवाद अधिसंख्य लोगों के जेहन में बिठा दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप अभी संसद में जय श्रीराम और अल्लाह-ओ-अकबर के नारे सुनने को मिले। गुजरात सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष रजनी दवे ने ‘पर्यावरण चुनौतियां: गुजरात के विशेष सन्दर्भ में’ विषय पर बात रखते हुए कहा कि गुजरात का विकास बाहर ज्यादा हो रहा है लेकिन असल कहानी कुछ और है। नदियों की हालत खराब है। प्राकृतिक संसाधनों की लूट मची है। जिस तरह का विकास हो रहा है उससे बाहर निकलने का रास्ता नहीं दिख रहा है, लेकिन रास्ता तो खोजना होगा। इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे गांधीवादी सुज्ञान मोदी ने गांधी के मोहन से महात्मा बनने की कहानी साझा करते हुए गांधीजी पर महान संत श्रीमद् राजचंद्र के प्रभाव का जिक्र किया। साथ ही उन्होंने कहा कि गाँधीजी के मूल्यों और विचारों की नए सिरे से व्याख्या और प्रचार-प्रसार का यह अभियान अनवरत चलता रहना चाहिए। सत्र का संचालन इतिहास की प्रोफ़ेसर और फ्रंट की उत्तराखंड इकाई की संयोजिका रेनू शुक्ला ने किया। 

तीसरा सत्र ‘सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन और देश का भविष्य’ पर केन्द्रित था, जिसमें ‘गांधीजी का आखिरी वसीयतनामा’ विषय पर इतिहासकार आलोक बाजपेयी ने कहा कि गांधी आजाद भारत की जरूरत के अनुसार संगठन के संविधान में बदलाव करने की सोच रहे थे, जिसके लिए वह एक शुरुआती ड्राफ्ट पर काम कर रहे थे। उस पर लोगों से मशविरा कर रहे थे। इसलिए वह कोई फाइनल वसीयतनामा नहीं था लेकिन उसी अधूरे ड्राफ्ट को गाँधीजी की ह्त्या के बाद उनके कुछ अनुयायियों ने भाववश गांधी के वसीयतनामा के तौर पर छाप दिया। कालांतर में वह राजनीति में एक मिथक बन गया कि गांधी कांग्रेस को भंग कर देना चाहते थे, जो कि सरासर गलत है। 

संस्कृतिकर्मी वागीश झा ने ‘शिक्षा की वर्तमान प्रणाली और भारत की आम जनता का भविष्य’ विषय पर कहा कि विनोबा ने कहा कि दिखा सकते हैं पर सिखा नहीं सकते। गांधी ने कहा कि शिक्षा के बिना कोई आंदोलन नहीं हो सकता। लेकिन आधुनिक शिक्षा में अलग-अलग विशेषज्ञता के अलग-अलग खाने बांट दिए गए हैं। गांधी शिक्षा में श्रम को महत्व देते थे, जिसका उस समय विरोध हुआ पर अब कई प्रसिद्ध शिक्षाविद् उसी को महत्व देने की बात कर रहे हैं। यानी गाँधीजी की नयी तालीम का मॉडल कोई पिछड़ा या चुका हुआ मॉडल नहीं था बल्कि वह इक्कीसवीं सदी में भी उतना ही आधुनिक और प्रासंगिक है। 

वरिष्ठ अर्थशास्त्री हेमंत कुमार शाह ने ‘गांधी के आर्थिक विचार और वर्तमान समस्याओं का समाधान’ विषय पर बोलते हुए आंकड़ों के जरिए गुजरात मॉडल की पोल खोली। उनका कहना था कि यह विकास गरीबी, बेरोजगारी और विस्थापन को बढ़ावा दे रहा है। इसका निराकरण गांधी के सर्वोदय सिद्धांत में है। इसी सिद्धान्त पर अर्थव्यवस्था खड़ी की जाए तो स्थिति सुधर सकती है। 

इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे सर्व सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष अमरनाथ भाई ने कहा कि गांवों में विकास ध्वस्त है। पर्यावरण को रौंदा जा रहा है। इसे विकास नहीं कहा जा सकता। विकास का असली मायने वही है जब अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचे। सत्र का संचालन स्नेह भावसार ने किया तो हर सत्र के दौरान गांधीवादी गीतों को पेश करने की जिम्मेदारी गौतम भाई और पलास किशन ने संभाली। रात्रि में गांधी कथा के गीतों की सुन्दर प्रस्तुति नरेन्द्र शास्त्री, क्षिति भट्ट, रमेश भाई और साथियों ने पेश कर लोगों को एकता के सूत्र में बंधने को प्रोत्साहित किया। 

अधिवेशन का दूसरा दिन संगठन के कामकाज पर केन्द्रित था, जिसमें 12 राज्यों से आए फ्रंट के कस्टोडियंस ने पिछले साल के कामकाज और आय-व्यय का ब्यौरा रखा। साथ ही इन राज्यों में संयोजक मंडल बनाने के साथ आगामी साल भर किस तरह से काम होना है उसका प्रस्ताव भी पास हुआ। अंत में सभी सदस्यों ने संगठन की गुजरात इकाई की संयोजिका एवं सामाजिक कार्यकर्ता मुदिता विद्रोही और फ्रंट की आईटी सेल के संयोजक स्नेह भावसार की इस सफल आयोजन के लिए प्रशंसा की। साथ ही नीता महादेव जी ने जिस तरह से सभी का उत्साह बढ़ाया, उनका धन्यवाद ज्ञापित किया। इसके अलावा सर्वसेवा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष महादेव विद्रोही जी का भी आभार प्रकट किया जिन्होंने हर कदम पर फ्रंट की हौसलाअफज़ाई की। साथ ही इस आयोजन में वालंटियर्स के तौर पर महती भूमिका निभाने के लिए नितिन और हेमंत की प्रशंसा की।

अटल तिवारी
मीडिया संयोजक
राष्ट्रीय आंदोलन फ्रंट

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