प्रो० यशपाल, आज देश के सूर्यग्रहण के समय टर्निंग पॉइंट कौन बताएगा?

सौरभ बाजपेयी 

आज़ाद भारत के सबसे कठिन टर्निंग पॉइंट पर प्रो० यशपाल हमें छोड़कर चले गए. सन 1995 की बात है. भारत में पूर्ण सूर्यग्रहण पड़ने वाला था. अंधविश्वासों से भरे समाज में उस दिन लगभग ब्लैक आउट जैसा माहौल था. हर कोई अपने खिड़की-किवाड़ बंद किये घर में कैद था. एक गर्भवती महिला के घर में तो खिड़की की दरारों में कागज ठूंस दिया गया था. कोई कहता था सूर्यग्रहण देखने से लोग अंधे हो जायेंगे. कोई कहता था ग्रहण के सूर्य की रौशनी पड़ते ही गर्भवती महिलाओं के गर्भ गिर जायेंगे. यानी सूरज डूबने वाला था और अन्धेरा छाने वाला था. एक अन्धविश्वासी भीरु समाज इस डर से डरा अपने खोल में सिमट गया था. 

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प्रो० यशपाल (1926- 2017)

ऐसे समय में एक नेहरूवियन (वो खुद को नेहरु युग का वारिस मानते थे) दूरदर्शन पर लोगों के दिल से डर मिटाने की अपील कर रहा था. सन जैसे सफ़ेद बाल और बेहद शांत व्यक्तित्व का एक वैज्ञानिक संत मुस्कुराते हुए बता रहा था कि अगर सूर्यग्रहण नहीं देखा तो जीवन भर पछताओगे. हम जैसे किशोर जो पैदा तो उसी जकड़े समाज में हुए थे, के लिए प्रो० यशपाल एक फ़रिश्ता थे जो हमें अज्ञान के अंधेरों से ज्ञान के उजालों की ओर लेकर जा रहे थे. 

बेहद सरल तरीक़े से उन्होंने कहा कि कोई पुराना एक्सरे लेकर उससे सूर्यग्रहण देखो. अगर एक्सरे न हो तो अपने हाथ की उँगलियों को जोड़कर उसकी झिरी से सूर्य की एक झलक देखो. बस नंगी आँखों से सूर्य मत देखना क्योंकि देख ही नहीं पाओगे. मेरे जैसे कलात्मक प्रतिभा के धनी और बाग़ी के लिए यह तो अपने आस-पास के समाज से बगावत का मौक़ा था. मैंने एक एक्सरे लिया और पुरानी फ़ाइलों को काटकर चश्मे तैयार कर लिए. चश्मे इसलिए कि मैंने जीवन में शायद ही कोई काम अकेले किया हो. जब तक सबको न बिगाड़ लूं, चैन नहीं मिलता. 

उसके बाद मैं नियत समय पर अपनी बहन के साथ छत पर चढ़ गया. फिर पड़ोस की छत से अपने दोस्त बुलाये जिनका साथ दिली प्रेम था. सब इकठ्ठा हुए और सूर्य ग्रहण की प्रक्रिया देख-देखकर तालियाँ बजने लगीं, शोर होने लगा. लोग चौंके और फिर सावधानी से माजरा समझकर अपने घरों की खिडकियों से झाँकने लगे. हम लोग जो अपनी छत पर तालियाँ पीट रहे थे, उन्हें बाहर आने के लिए उकसाने लगे. लोगों ने हिम्मत की और थोड़ी देर में माहौल बदल गया. इतने सारे चश्मे बनाए ही इसीलिए थे कि हर कोई देख सके. लोग अपने घर बुलाने लगे और मैं दौड़-दौड़कर लोगों को एक्सरे फ़िल्म से उन्हें सूर्यग्रहण दिखाने लगा. धीरे-धीरे लगभग अंधेरा हो गया और मौसम ठंडा हो गया. इस समय सूर्य एकदम ईद के चाँद जैसी कला में आ गया था. पूर्ण सूर्यग्रहण भारत के कुछ ही हिस्सों में दिखाई दिया था. यह कहानी सिर्फ ये बताने के लिए कि हमारी पीढ़ी के पास प्रो० यशपाल थे जो हमें खेल-खेल में वैज्ञानिक बना रहे थे. 

एक बार जेएनयू में नेहरु मेमोरियल लेक्चर की सदारत करते हुए नेहरूजी से जुड़े कुछ किस्से सुनाये. वो आज की परिभाषा में देशद्रोह के अड्डे जेएनयू के 2012 तक चांसलर भी रहे. उन किस्सों में एक आप सबके साथ साझा करता हूँ क्योंकि प्रो० यशपाल के देहांत पर आंसू वो भी बहायेंगे जो नेहरूजी को दिन-भर गाली देते नहीं थकते. जिस वक़्त दिल्ली में विभाजन के बाद दंगे हो रहे थे, प्रो० यशपाल किंग्सवे कैंप में लगे शरणार्थी शिविर में वालंटियर हो गए (स्वयंसेवक लिखने से भाई लोग कुछ और अर्थ लगा लेंगे). वो बताते हैं कि एक सुबह अचानक एक कार आकर रुकी जिसे नेहरु खुद ड्राइव कर रहे थे. नेहरु ने तकरीबन बीस साल के यशपाल से कड़कती आवाज़ में पूछा— इस शिविर का सुपरवाइसर कौन है? प्रो० यशपाल ने बताया कि सब यहीं आसपास हैं. नेहरु बोले— उनको बोलो मुझे शरणार्थियों से बात करनी है. 

तुरंत लोगों को इकठ्ठा किया गया और एक मेज रख दी गयी जिस पर खड़े होकर नेहरु ने शरणार्थियों को ढाढ़स बंधाना शुरू किया और अपनी तरफ से नफरत न करने की अपील की. इन शरणार्थियों में ज्यादातर सिख और हिन्दू थे जो तब के पश्चिमी पाकिस्तान से अपना सबकुछ लुटाकर आये थे. उनमें एक नौजवान बिफर उठा और कहने लगा कि जैसे मुसलमानों ने मेरे परिवार को काट डाला है, मैं मुसलमानों को काट डालूँगा. प्रो० यशपाल बताते हैं कि 58 साल के नेहरु उस मेज से भीड़ के अन्दर कूद पड़े और दोनों हाथों से उस लड़के के बाल पकड़कर हिलाने लगे. नेहरु ज़ार-ज़ार रो रहे थे और लगभग दृढ़ याचना करते हुए कह रहे थे— हमें इस देश को पाकिस्तान नहीं बनने देना है, मैं इस देश को पाकिस्तान नहीं बनने दूंगा.

आज जिस दौर में वो लोग सत्तानशीन हैं जिनका सपना भारत को पाकिस्तान बनाने का है, हमारे बीच नेहरु तो कब के नहीं रहे, आज उस पीढ़ी की एक और प्रज्ज्वलित ज्योति बुझ गयी. प्रो० यशपाल, आज इस देश के सूर्यग्रहण के समय में हम लोगों को टर्निंग पॉइंट कौन बताएगा?       

(लेखक आज़ादी की लड़ाई के प्रचार-प्रसार को समर्पित संगठन राष्ट्रीय आन्दोलन फ्रंट के महासचिव हैं.)

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