डॉ० ब्रह्मदेव शर्माजी को सादर नमन

(वरिष्ठ गांधीवादी डॉ० ब्रह्मदेव शर्माजी को राष्ट्रीय आन्दोलन फ्रंट की तरफ से भावभीनी श्रद्धांजलि..)


ग्वालियर। आदिवासियों के खातिर अपने पद से इस्तीफा देने वाले केन्द्रीय गृह मंत्रालय के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर ब्रह्मदेव शर्मा नहीं रहे। ग्वालियर में रहते हुए उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। वे पिछले एक साल से ही काफी बीमार चल रहे थे और बीच में उनकी याददाश्त भी कमजोर होने लग गई थी। जिस वजह से वो ज्यादातर अपने घर की चार दिवारी में ही बंद रहने लगे थे। सोमवार को ग्वालियर में ही दोपहर करीब 12 बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

डॉ. ब्रह्मदेव वो शख्स थे जिन्हें सरकार ने नक्सलियों के साथ बात करने के लिए मध्यस्थता करने के लिए भेजा था। दरअसल 2012 में नक्सलियों ने तत्कालीन कलक्टर अलेक्स पॉल मेनन को अगवा कर लिया था। इस घटना ने सरकार को हिला कर रख दिया था। ऐसे में जब बातचीत की संभावना बनी तो सरकार ने डॉक्टर ब्रह्मदेव को नक्सलियों का समझाने और कलक्टर को आजाद करवाने की जिम्मेदारी सौंपी,जिसमें उन्हें सफलता भी हासिल हुई।

आदिवासियों को नुकसान से बचाने के लिए ऐसे कई मौके आए जब डॉक्टर बह्मदेव सरकार के खिलाफ खड़े हो गए।1973-74 में वो केन्द्रीय गृह मंत्रालय में निदेशक बने और फिर संयुक्त सचिव भी। इस दौरान सरकार बस्तर में जनजातीय इलाके में विश्व बैंक से मिले 200 करोड़ रुपये की लागत से 15 कारखाने लगाए जाने की योजना लाई,जिसका उन्होंने खुलकर विरोध किया। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इससे सालों से उन इलाकों में रह रहे जनजातीय लोग दूसरे क्षेत्र में पलायन करने के लिए मजबूर हो जाएंगे, जो सही नहीं है। आखिरकार 1980 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देकर खुद को नौकरशाही से आजाद कर लिया।

आदिवासियों के खातिर उठाए कड़े कदम
डॉक्टर ब्रह्मदेव को बैलाडीला के एक चर्चित कांड से भी जाना जाता है, जिसमें उन्हें करीब 300 आदिवासी लड़कियों की गैर जनजातीय पुरुषों से करवा दी थी। दरअसल, 1968 के दौरान जब मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ एक था तो ब्रह्मदेव बस्तर के कलक्टर थे। निरीक्षण के दौरान उन्हें पता चला कि बैलाडीला में लौह अयस्क की खदानों में काम करने गए गैर जनजातीय पुरुषों ने शादी के नाम पर कई भोली-भाली आदिवासी युवतियों का दैहिक शोषण किया और फिर उन्हें छोड़ दिया। ऐसी परिस्थिति में उन्होंने ऐसी तमाम आदिवासी युवतियों का सर्वे कराया और उनके साथ यौन संबंध बनाने वाले लोगों, जिनमें कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी थे, को बुलाकर कह दिया कि या तो इन युवतियों को पत्नी के रूप में स्वीकार करो या आपराधिक मुकदमे के लिए तैयार हो जाओ। इसके बाद 300 से अधिक आदिवासी युवतियों की सामूहिक शादी करवाई गई।

(www.patrika.com से साभार)


'Stop signing MoUs with big companies, 
the violence will stop'
   By  Onkareshwar Pandey 
   07 Dec 2015 Posted 24-May-2012 
Vol 3 Issue 21

A couple of months ago, a fleet of Municipal Corporation of Delhi (MCD) vans suddenly landed up near a stinking by-lane of Delhi's East Nizammuddin area and earnestly began clearing off months of accumulated garbage and cleaning up the sewer lines.
As the neighbours looked on in amazement, the assembled crew walked up to a nondescript home and rang the doorbell.
During his tenure as the DM of Bastar, Sharma refused to sign any mining lease (Photo: The Sunday Indian)
No sooner had the dhoti-kurta clad old gentleman opened the door, the officers began apologising. “We had no idea that you lived here sir. We are cleaning up the area completely,” they told him with folded hands.
Indeed, if you walk into the same neighbourhood today – you'll notice with surprise that the MCD brigade – for once – kept its promise.
Till the arrival of the MCD vans on their doorsteps that fateful day, hardly anybody in the locality gave the 81-year-old former IAS officer BD Sharma a second glance.
But overnight, the man had not only become a messiah for residents in this locality – for bringing about a 'clean' revolution - but had also shot to fame in the national consciousness for being the key man behind the release of Sukma collector Alex Paul Menon after 12 days in Maoist captivity.
Interestingly, it was the Maoists who had handpicked Sharma to be their interlocutor with the government for mediating the release of the abducted Sukma collector.
But why Sharma? More pertinently, why do Maoists have a soft spot for this feeble elderly gentleman?
The answer to that question is Sharma's decades of work among the tribals of the region, first as the Collector of the undivided Bastar district of Madhya Pradesh and then as a social activist.
The 1968-69 Bailadila incident is particularly famous wherein Sharma forced non-tribals working in nearby mines to marry 300 tribal women – whom they had been sexually exploiting for years.
Ever since, he is looked upon with immense admiration among the tribals of the region, and has also campaigned extensively for their cause. In conversation with Onkareshwar Pandey, Sharma spoke at length about the potential solutions for unrest in Maoist affected areas.

Excerpts from the interview:

Red terror is on a rise. How can the menace be tackled?
The tribals are raising some important questions, which have to be discussed. Before independence, all tribal areas were treated as secluded parts where no rules were followed.
According to Tribal Act 1935, only the Governor was vested with the power of deciding the laws to be implemented in the respective tribal areas. But of late, Governors have forgotten to use their discretion. As a result, almost all laws are enacted in tribal areas. Since tribals have for centuries followed their own rules, obviously there will be a clash with the State.

But what are Naxals demanding now?
The tribals want to have ownership of all natural resources in their areas. The resources, they feel were theirs to start with. Their long standing demand is that natural resources should be owned by the people and not the government.

But are guns the solution?
Well, this may continue till such time as the ownership issue is resolved. This was also the reason for Tana Bhagat's revolt.

You adamantly refused to sign any mining lease during your tenure as the DM of Bastar. Why? 
I never sanctioned any mining lease because I knew that it would be against tribal interests. You cannot do developmental work in a tribal region solely on the basis of money. I wrote this on every file that I rejected.

Why did you resign from the IAS?
It was due to my differences with the government over the Bastar Pine Project. At that time, I was the Secretary, Tribal Affairs in MP. The government wanted to set up 15 industries by taking a loan of Rs. 200 crore from the World Bank. I had protested and so the project was cancelled. This led to my resignation.

You were the last SC/ST commissioner who worked at a notional salary of Re.1 per month. How was the experience?
Money was not my reason for taking on the responsibility of welfare of the SC/ST communities. Just 18 days before her assassination, Indira Gandhi had asked me to take the responsibility. I handled the charge from 1986 till 1991. Only after a thorough study of the issue did I finally submit the 28th report on SC/ST to the President.

You now lead the Bharat Jan Andolan. What is the movement about?
This movement was started with an aim to fight for free water, forest and land to tribals. It has huge support from tribals. This is why the government was forced to bring in the PESA –Panchayats (Extension to the Scheduled Areas) - Act. Sadly, this act has not been enacted in its true spirit. Even the Forest Act 2006 has not been implemented honestly.

How can we prevent Maoists from indulging in violence?
If we stop signing MoUs that allow major companies to take land on lease for setting up industries, violence will automatically stop. It is sad but there is hardly any talks held with Maoists. Only dialogue can get a solution. Fortunately, some initiative in this direction has recently come from social activists.



श्रद्धांजलियाँ 

डॉ. ब्रह्मदेव शर्मा (Dr. B D Sharma) को अश्रुपूरित नमन...
सुमन केसरी 

गणित जगत की सैर, बेजुबान, वेब ऑफ़ पावर्टी, फोर्स्ड मैरिज़ इन बेलाडिला, दलित्स बिट्रेड आदि अनेक विचारणीय पुस्तकें लिखने वाले और हस्तलिखित पत्रिका भूमिकाल का संपादन करने वाले बी डी नहीं रहे...
उनसे पहली मुलाकात 1979 -80 के आसपास हुई थी। गोकि अजय से मेरी मुलाकात 1977 में ही हो गई थी। जाने कितनी बातें सुनीं उनके बारे में पुरुषोत्तम के मुख से...हर बार एक बात जरूर रहती और वह थी गहरे आदर और सम्मान का भाव। जब उनसे मिली तो सम्मान का भाव एकदम आ गया...वे थे (लिखना कठिन है!) ही ऐसे...
गहरे में गाँधीवादी...
कहते अगर संविधान को सही में लागू कर दिया जाए तो भारत की समस्याएं हल हो जाएंगी, परेशानी यह है कि संविधान पुस्तक बन कर रह गई है...
वे ज्यादातर तो मुझे बहू ही पुकारते, कभी कभी सुमन भी...
कुछ बातें जो कभी नहीं भूल पाऊंगी उनमे से एक यह कि," मैं तो सोचता था कि तुम आदिवासियों के बीच काम करोगी, तुमने तो नौकरी शुरु कर दी..." वे स्पष्टतः दुखी थे..
दूसरी बात अभी कुछ साल पहले की है - एक गाँधीवादी के मुँह से सुनना- गजब का अनुभव था वह, एक बेबसी का अहसास भी...
"सुमन (इस बार उन्होंने बहू नहीं कहा था मुझे...एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से बात कर रहा था,,,रिश्तों के परे...मनुष्य- मनुष्य से..) अगर तुम वहाँ बस्तर में चली जाओ तो सोचोगी इन्होंने इतनी देर से बंदूकें क्यों उठाईं?..." मैं हतप्रभ थी..उन्हें जानती थी इसीलिए और ज्यादा...पर वे अपनी बात पर अडिग थे... 
वे आखिरी समय तक अन्याय और हिंसा के खिलाफ़ लड़ते रहे... भारत में आरक्षण की जरूरत पर उन्होंने बहस करके हमारी दृष्टि साफ़ की थी...
मुझे याद है वह दिन भी जब बस्तर में शराब- भू माफ़िया ने उनके मुख पर कालिख पोता था...यह वही बस्तर था, जहाँ वे भगवान की तरह पुजते थे...उसके बाद जे एन यू में पुरुषोत्तम आदि ने उनकी सभा आयोजित की जिसमें तिल रखने को जगह न थी...
X X X
अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात है, जब आपसे मिलने मैं और पुरुषोत्तम खेरापति कॉलोनी, गवालियर वाले घर पर पहुँचे थे...
ब्रह्मदेव जी अपने अंतिम दिनों में स्मृतिलोप (dementia) से जूझ रहे थे...उन्हें कुछ भी याद न रहता था...पर एक बात वे अपने अंतिम पल तक न भूले- काम, लोगों के हित के लिए, उनके हर तरह के दारिद्रय को दूर करने के लिए काम करना नहीं भूले...
जब हम उनसे मिलने पहँचे तो उन्हें कुछ याद था कि हम भी उन्हीं की राह के पथिक हैं...देखते ही खुश हो गए..."पुरुषोत्तम तुम एक मीटिंग बुला लो..बहुत काम है, समग्र दृष्टि की जरूरत है...ऐसे नहीं हालात सुधरेंगे...वी हैव टू हैव अ कॉम्प्रिहेंसिव एजेंडा..." ..
हमारी आँखों में आंसू थे...
अजय ने बताया कि "उन्हें शांत रखने का, खिलाने का, सुलाने का एक ही तरीका है कि बता दो मीटिंग वाले आए हैं, आपको जल्दी जाना है..."
एक कर्मठ व्यक्ति..सतत कर्मठ...
याद है न अभी कुछ महीने पहले ही तो वे मोटर साइकिल में पीछे बैठे अपहृत आइ ए एस को छुड़ाने नक्सलियों के पास गए थे...भेजे गए थे...अद्भुत डायलॉग था उनका आदिवासियों से भी और नक्सलियों से भी...
वे 1956 बैच के मध्यप्रदेश काडर के आई ए एस थे, एस सी एस टी कमीशन के अध्यक्ष और उस जमाने में नेहू के वाइस चांसलर जब वहाँ हिंसा का दौर था...सुना है कि उनसे पहले वाले वाइस चांसलर की कुर्सी के नीचे बम फटा था...तब इंदिरा जी ने उन्हें वहाँ भेजा था...
अभी अभी अजय शर्मा का फोन आया, इतनी रात गए फ़ोन...मन डर गया और आशंका सच निकली
अंकल नहीं रहे...
आपको प्रणाम...आप हमारे मन में तो सदा जीवित ही रहेंगे अंकल..


कहाँ से लायेंगे एेसे व्यक्ति को हम?
 प्रो० भूपेंद्र यादव 
1969 - बस्तर ज़िले का कलेक्टर जिसने वहाँ की 300 जन-जातिय औरतों से बाहरी आदमियों की शादी करवाई। वरना यह औरतें केवल बाहरी लोगों के मनोरंजन का साधन मात्र रहतीं।
1972 - मध्य प्रदेश के DPI की हैसियत से होशंगाबाद विज्ञान कार्यक्रम को स्वीकृति दी।
1981 - IAS से त्याग पत्र दिया क्यों कि मध्य प्रदेश सरकार जंगल पदार्थों का दोहन कर के जन जातियों को दूर भगाना चाहती थी।
इन्दिरा गांधी ने अपनी हतया के 18 दिन पहले इन को भारत का का SC/ ST Commissioner बन ने को कहा। इस ओहदे पर इन की रिपोर्ट 28 वीं थी। पर एक मील का पत्थर समझी गई।
भारत जन आन्दोलन के जनक और सामाजिक कार्यों मे आख़िर तक लगे रहने वाले, ब्रह्म देव शर्मा को हमें भी मिलने का सौभाग्य मिला था।
ऐसा अफ़सर, जो रिटायर होने के बाद, एक ग़रीबों की बसती से अपना दफ़्तर चलाता हो।
एेसा बुज़ुर्ग, जो बिमार होने के बावजूद, घर आये लोगों से उत्साह पूर्वक बात चीत करने बैठ जाये।
ऐसा ब्राह्मण जिसने SC/ ST Commission का अध्यक्ष बन कर अत्यन्त सराहनिये रिपोर्ट लिखी हो।
कहाँ से लायेंगे एेसे व्यक्ति को हम?

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