गांधीजी के खिलाफ दुष्प्रचार का एक जवाब

(वरिष्ठ गांधीवादी डेनिअल मझगाँवकर ने सोशल मीडिया पर-- ख़ास तौर पर व्हाट्स एप पर-- गांधीजी के खिलाफ किये जा रहे दुष्प्रचार का एक जवाब भेजा है. उन्होंने लिखा है की "गांधीजी का पूरा जीवन तो एक खुली किताब जैसा ही सारी दुनिया के सामने हैं. और उनका स्वाभाव भी ऐसा था कि वे दूसरों के गुणों को ही देखते थे, दोषों को नहीं, और अपने दोष छप्पर पर चढकर दुनिया के सामने एलान करते थे." उन्होंने यह जवाब श्री जगन फडणीस की किताब "महात्म्याची अखेर " से लिए हैं.) 



* महात्मा गांधी 25 जून 1934 को पूणे आये थे. उस वख्त उनपर बम डाला गया. 25 जून के दिन क्या देश का विभाजन हुआ था ? क्या उस समय पाकिस्तान को 55 करोड रूपये देने का प्रश्न निर्माण हुआ था ? तो फिर महात्मा गांधी के मारने का प्रयत्न पुणे में ही क्यों  ?

​* सितंबर ​1944 में महात्मा गांधी सेवाग्राम आश्रम से रेल से मुंबई के लिए निकल रहे थे उस समय आश्रम के बाहर हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं ने महात्मा गांधी  को धक्कामुक्की की. उस वख्त पुलीस ने नथुराम गोडसे और ल. ग. थत्ते इन दोनों के पास से जांबिया (छुरा) जप्त किया. यह प्रयत्न हुआ उस वख्त क्या देश का विभाजन हुआ था ? 55 करोज रूपया पाकिस्तान को देने का प्रश्न खडा हुआ था ? नहीं. तो फिर यह प्रयास किस लिए ? 

​* "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा विशषतः ​संघ के कारनामे और उनके कारण सारे देश में निर्मित वातावरण के कारण ही गांधीजी के खून की भयानक घटना घटित हुई, ऐसे हमारे अहवाल कह रहे हैं. गांधी के खून के षडयंत्र में हिंदू महासभा के भडकाने वाले विचारों का गुट शामिल हुआ है, इस बारे में मेरे मन में जरा सी भी शंका नहीं है. रा. स्व. संघ के कारनामों के कारण देश और सरकार को ही संकट-भय का निर्माण हुआ है." ऐसा सरदार वल्लभभाई पटेल ने डाॅ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को भेजे गये पत्र में लिखा है. (सरदार पटेल्स काॅरस्पाॅण्डन्स, खंड 6, पृष्ठ 323).

* संघ के नोताओं के भाषण जातिवाद के विष से भरे हैं. और संघ के इसी विषमयता के कारण महात्मा गांधी की हत्त्या हुई . गांधी के खून होनेपर संघ के लोगोंने मिठाई बाँटकर आनंद प्रदर्शित किया है." ऐसा सरदार पटेल ने सरसंघसंचालक गोळवलकर गुरुजी को 11 सितंबर 1948 को भेजे पत्र में कहा है. 

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