खान अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान: सीमान्त गाँधी

फिल्म्स डिवीज़न की यह डाक्यूमेंट्री सरहदी गाॅंधी की ज़िंदगी से रूबरू कराती है। आज के अफ़ग़ानिस्तान के हालात देखते हुए कोई सोच भी नहीं सकता कि इस शख़्स ने कभी अहिंसा को इस इलाके की पहचान बना दिया था। अंग्रेज़ों का दमन सहते हुए एक समय बादशाह खान मुस्लिम लीग के पास मदद मांगने गए, लेकिन मुस्लिम लीग ने साफ़ इंकार कर दिया। इसके बाद वो कांग्रेस के पास पहुंचे। कांग्रेस ने कहा कि हम दोनों की लड़ाई एक है। इस तरह बादशाह खान और उनके खुदाई खिदमतगार गाँधी के हमसफ़र हो गए। एक दफा कांग्रेस की एक मीटिंग में एक नवयुवक ने गाँधी को बुज़दिल कह दिया। बादशाह खान को बहुत बुरा लगा, लेकिन गाँधी सिर्फ हँसते रहे। अपने आलोचकों के साथ गाँधी का ऐसा दोस्ताना बर्ताव देखकर बादशाह खान बहुत प्रभावित हुए। खुदाई खिदमतगारों को लाल कुर्ती वाले भी कहा जाता था। इन लाल कुर्ती वालों को एक साथ दोतरफ़ा हमलों का सामना करना पड़ा। एक ओर अंग्रेजी सरकार थी और दूसरी तरफ मुस्लिम लीग की गुण्डागर्दी, लेकिन अपने उसूलों पर कायम रहकर लाल कुर्ती वालों ने सब कुछ सहा। बादशाह खान ने खुलकर कहा कि अहिंसा उनके इमाम (आस्था) का हिस्सा है। इस पर मुस्लिम लीग ने खूब हो हल्ला मचाया। 

सरहदी गाँधी आज हमारे लिए बहुत अजीज़ हैं। वो यह सिद्ध करने वाले पहले लोग थे कि इस्लाम का हिंसा से कोई वास्ता नहीं है। हिन्दू- मुस्लिम एकता के गजब हिमायती हमारे नेता के लिए यह श्रद्धांजलि व्यक्त करने का समय है। इसी कड़ी में यह डाक्यूमेंट्री देखिए... 

     

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