मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की विरासत: भारत का विचार, पाकिस्तान के परिप्रेक्ष्य में

राज्य सभा टीवी

11 नवंबर 2014
(मुशीरुल हसन, मृदुला मुख़र्जी, मौलाना सैयद अथर देहलवी, क़मर आग़ा, आरफ़ा खानम शेरवानी के साथ)

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद हमारे राष्ट्रीय आंदोलन के शीर्ष नेताओं में से एक हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत फिरकापरस्ती के खिलाफ उनकी लड़ाई थी। उन्होंने कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन के अध्यक्ष के तौर पर एक ऐतिहासिक भाषण दिया था, जिसमें पाकिस्तान के विचार और मुस्लिम लीग की तँगजहनी की धज्जियां उड़ाई गई थीं। जिन्नाह उनसे बेहद चिढ़ते थे। 1940 में उन्होंने आज़ाद को "कांग्रेस का मुस्लिम मुखौटा" कहकर उनसे बात करने से इंकार कर दिया था। मौलाना आज़ाद इस्लाम के महान व्याख्याता थे। कोई उनसे इस्लाम की जानकारी के मामले में गलत जिरह करके जीत नहीं सकता था। जब मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के इकलौते रहनुमा होने का दावा किया तो मौलाना उनकी आँख की किरकिरी बन गए थे। मौलाना आज़ाद ने पाकिस्तान की मांग को नाजायज़ करार दिया था। उन्होंने 1947 की एक प्रसिद्ध तहरीर में पाकिस्तान भविष्य की घोषणा कर दी थी। उनकी तमाम बातें सच साबित हुईं। गुलाम भारत में हिन्दू- मुस्लिम एकता के आधार पर बनने वाले भारत की नींव आज़ाद जैसे दिलेरों ने डाली थी। आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री बनकर उन्होंने महान योगदान दिए। पक्के नमाज़ी मुसलमान मौलाना आज़ाद ने आईआईटी जैसे वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों की बुनियाद रखी।

मौलाना आज़ाद और गाँधी दोनों धार्मिक व्यक्ति थे, लेकिन यह दोनों हिन्दुस्तान में धर्मनिरपेक्षता  को कायम करने की लड़ाई लड़े। साम्प्रदायिकता की बुनियाद तो दो ऐसे लोगों ने मजबूत की जो खुद को अधार्मिक मानते थे। उनमें एक थे जिन्नाह और दूसरे सावरकर। इन्हीं बिन्दुओं पर 'राज्य सभा' टीवी की एक डिबेट देखिए...


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