नेहरू की ज़िन्दग़ी के अनछुए पहलू
रेहान फ़ज़ल
बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
14 नवंबर 2014
गुस्सैल नेहरू
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जितने हंसमुख थे, उतने ही ग़ुस्सैल भी थे.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के आगमन पर दिल्ली हवाई अड्डे पर पत्रकारों की भीड़ पर वह इतना ग़ुस्सा हुए कि गुलदस्ते से ही मारने दौड़ पड़े थे. नेहरू के बारे में ढेरों ऐसी बातें हैं जो उन्हें एक लोकप्रिय नेता, एक शौक़ीन मिजाज़ व्यक्ति, मितव्ययी और एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले शख्स के रूप में चित्रित करती हैं. अपने ज़माने में नेहरू की गिनती दुनिया के पांच सर्वश्रेष्ठ अंग्रेज़ी लेखकों में होती थी. किसी अन्य शख़्स के लिखे किसी काग़ज़ पर दस्तख़त करना उनकी शान के ख़िलाफ़ होता था. इसका नतीजा ये होता था कि नेहरू का अधिकतर समय चिट्ठियों को डिक्टेट करने या अपना भाषण तैयार करने में जाता था. नेहरू के सर्वश्रेष्ठ भाषण या तो बिना किसी तैयारी के अचानक दिए गए होते थे या उन्होंने उन्हें स्वयं तैयार किया होता था. गाँधी की हत्या पर दिया गया उनका मशहूर भाषण (द लाइट हैज़ गॉन आउट ऑफ़ अवर लाइफ़) लिखित भाषण नहीं था और उसी समय आकाशवाणी के स्टूडियो में बिना किसी तैयारी या नोट्स के उन्होंने संबोधित किया था.
बर्नाड शॉ से मुलाकात
नेहरू के सचिव एमओ मथाई अपनी किताब 'रेमिनेंसेस ऑफ़ नेहरू एज' में लिखते हैं कि जब नेहरू मशहूर लेखक जॉर्ज बर्नाड शॉ से मिलने गए थे तो बर्नाड शॉ ने उन्हें अपनी पुस्तक 'सिक्सटीन सेल्फ़ स्केचेज़' पर अपना हस्ताक्षर कर भेंट की. उन्होंने उस पर नेहरू का नाम जवाहर लाल की जगह जवाहरियल लिखा. मथाई ने तुरंत इस ग़लती की तरफ़ उनका ध्यान दिलाया. शॉ अपनी लाइब्रेरी में गए और नेहरू की आत्मकथा निकाल कर लाए. उन्हें अपनी ग़लती का अहसास हुआ, लेकिन शरारती अंदाज़ में बोले, ’इसको ऐसे ही रहने दो. इट साउंड्स बेटर.’ नेहरू ने उन्हें कुछ चौसा आम खाने के लिए दिए. शॉ ने पहली बार आम देखा था. वो समझे कि आम की गुठलियाँ खाई जाती हैं. नेहरू ने उन्हें आम काट कर दिखलाया और बताया कि कैसे आम का गूदा खाया जाता है.
‘कंजूस’ नेहरू
नेहरू अपने ऊपर बहुत कम पैसे ख़र्च करते थे. मथाई कहते हैं कि कुछ मामलों में तो उन्हें कंजूस कहा जा सकता था. लेकिन एक बार उन्होंने सेस ब्रूनर की गाँधी जी की गहन सोच की मुद्रा में बनाई गई पेंटिंग ख़रीदने के लिए पाँच हज़ार रुपए ख़र्च करने में एक सेकेंड का भी समय नहीं लिया. उनके सुरक्षा अधिकारी के एफ़ रुस्तमजी लिखते हैं कि एक बार डिब्रूगढ़ की यात्रा के दौरान वो उनका सिगरेट केस लेने उनके कमरे में गए तो उन्होंने देखा कि उनका नौकर उनके फटे हुए काले मोज़ों को सिल रहा है. नेहरू को बर्बादी बहुत नापसंद थी.
कई बार वह कार रुकवाकर अपने ड्राइवर को भेजते थे कि वह बगीचे में चल रहा पानी का पाइप बंद करके आए. एक बार सऊदी अरब की यात्रा के दौरान उन्होंने रियाद के जगमगाते राजमहल के एक-एक कमरे में जाकर उसकी बत्ती बंद की.
555 सिगरेट के शौकीन
एक बार किसी ने रुस्तमजी से पूछा क्या नेहरू शराब पीते हैं. उनका जवाब था, कभी नहीं. हाँ उन्हें सिगरेट पीने की ज़रूर आदत थी. वो स्टेट एक्सप्रेस 555 पिया करते थे. पहले वो दिन भर में 20-25 सिगरेट पी जाते थे, लेकिन बाद में वो दिन भर में सिर्फ़ पाँच सिगरेट पिया करते थे.
नेहरू के समय में सभी विदेशी शासनाध्यक्ष या तो राष्ट्रपति भवन में ठहरा करते थे या नेहरू के निवास स्थान तीन मूर्ति भवन में. उस दौरान इन विदेशी अतिथियों के कमरों में विदेश मंत्रालय के तरफ़ से तरह-तरह की चुनिंदा शराब रखवा दी जाती थी और उन्हें सर्व करने के लिए एक अंग्रेज़ी बोलने वाला सेवक तैनात कर दिया जाता था. लेकिन नेहरू द्वारा दिए गए किसी सरकारी भोज में कोई भी शराब कभी सर्व नहीं की जाती थी. एक बार ज़रूर 1955 की रूस यात्रा के दौरान उन्होंने वहाँ तैनात राजदूत केपीएस मेनन के कहने पर ख्रुशचेव को दिए गए भोज में शेरी और वाइन सर्व करने की इजाज़त दी थी और तब भी ये शर्त रखी थी कि भोज में मौजूद कोई भी भारतीय उनका सेवन नहीं करेगा.
नेहरू के समय में सभी विदेशी शासनाध्यक्ष या तो राष्ट्रपति भवन में ठहरा करते थे या नेहरू के निवास स्थान तीन मूर्ति भवन में. उस दौरान इन विदेशी अतिथियों के कमरों में विदेश मंत्रालय के तरफ़ से तरह-तरह की चुनिंदा शराब रखवा दी जाती थी और उन्हें सर्व करने के लिए एक अंग्रेज़ी बोलने वाला सेवक तैनात कर दिया जाता था. लेकिन नेहरू द्वारा दिए गए किसी सरकारी भोज में कोई भी शराब कभी सर्व नहीं की जाती थी. एक बार ज़रूर 1955 की रूस यात्रा के दौरान उन्होंने वहाँ तैनात राजदूत केपीएस मेनन के कहने पर ख्रुशचेव को दिए गए भोज में शेरी और वाइन सर्व करने की इजाज़त दी थी और तब भी ये शर्त रखी थी कि भोज में मौजूद कोई भी भारतीय उनका सेवन नहीं करेगा.
‘मौलाना’ नेहरू
सरदार पटेल नेहरू से तेरह साल बड़े थे और गाँधी से सात साल छोटे थे. इंदर मल्होत्रा बताते हैं कि नेहरू और पटेल के घर आस-पास थे. नेहरू ने उन्हें कह रखा था कि जब भी कोई मंत्रणा करनी हो वो स्वयं उनके घर आएंगे. उन्हें उनके यहाँ आने की ज़हमत करने की ज़रूरत नहीं है. वो हमेशा उनके यहाँ पैदल जाते थे. मौलाना आज़ाद ज़रा दूर रहते थे. इसलिए नेहरू उनके घर मोटर में बैठकर जाते थे और गपशप करते थे. टेलिफ़ोन पर नेहरू की कर्ट्सी होती थी कि वह ख़ुद अपने हाथ से मौलाना को फ़ोन मिलाते थे. एक दिन उन्होंने अपने निजी सचिव एमओ मथाई से कहा कि मौलाना साहब से फ़ोन पर बात कराइए. जब मौलाना ने फ़ोन लिया और नेहरू आए तो उनका पहला जुमला था, "जवाहर लाल तुम्हारी उंगलियों में दर्द हो गया है कि तुम दूसरे से फ़ोन मिलवा रहे हो." नेहरू मौलाना का आशय समझ गए और बोले आइंदा से ये ग़लती कभी नहीं होगी. एक बार पटेल से किसी ने पूछा कि इस समय भारत में सबसे बड़ा राष्ट्रवादी मुस्लिम कौन है. सब सोच रहे थे कि पटेल मौलाना आज़ाद या रफ़ी अहमद किदवई का नाम लेंगे, लेकिन पटेल का जवाब था, ‘मौलाना नेहरू.’
अविश्वासी नेहरू
नेहरू को अपने आप को अविश्वासी कहने में मज़ा आता था. उन्होंने कभी भी किसी मूर्ति के सामने सिर नहीं झुकाया, कभी कोई व्रत नहीं रखा और न ही किसी ज्योतिषी से सलाह ली. एक बार 1954 में कुंभ के दौरान लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें मनाने की कोशिश की कि मौनी अमावस्या पर वो गंगा में डुबकी लगाएं. उन्होंने कहा कि भारत के करोड़ों लोग ऐसा करते हैं. नेहरू को उनकी भावना और गंगा का सम्मान करते हुए ऐसा करना चाहिए. नेहरू का जवाब था, "गंगा मेरे अस्तित्व का हिस्सा है. मेरे लिए ये इतिहास की नदी है, लेकिन फिर भी मैं इसमें कुंभ के दौरान नहीं नहाऊंगा. वैसे इसमें नहाना मुझे पसंद है, लेकिन कुंभ के दौरान हरगिज़ नहीं."
गर्म ओवरकोट में मफ़लर
घाना के नेता क्वामे न्क्रूमा ने अपनी आत्मकथा में नेहरू के बारे में एक दिलचस्प किस्सा लिखा है. एक बार न्क्रूमा जाड़े के मौसम में भारत की यात्रा पर आए. वह ट्रेन से उत्तर भारत की यात्रा पर निकल रहे थे कि अचानक प्रधानमंत्री नेहरू स्टेशन पर पहुंच गए. वह अपने साइज़ से बड़ा एक ओवर कोट पहने हुए थे. उन्होंने न्क्रूमा से कहा, "ये कोट मेरे लिए बहुत बड़ा है, लेकिन आपके लिए बिल्कुल ठीक साइज़ का है. इसको पहन कर देखिए." न्क्रूमा ने उस कोट को पहना और वो बिल्कुल उनके साइज़ का निकला. जब ट्रेन चल पड़ी तो उन्होंने कोट की जेब में हाथ डाला. एक जेब में एक गर्म मफ़लर और दूसरी जेब में एक जोड़ी गर्म दस्ताने थे. अपने मेहमान के आराम के बारे में सिर्फ़ नेहरू ही इस तरह सोच सकते थे.
आगबबूला नेहरू
वैसे तो नेहरू बहुत हंसमुख थे, लेकिन जब कभी उन्हें गुस्सा आता था तो वो सभी हदें पार कर जाते थे. उनके सुरक्षा अधिकारी रह चुके के एफ़ रुस्तम जी अपनी किताब 'आई वाज़ नेहरूज़ शैडो' में लिखते हैं कि 1953 में जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद अली अपनी पत्नी के साथ दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरे तो उन्हें नेहरू के मशहूर गुस्से का नज़ारा अपनी आँखों से देखने का मौका मिला. हुआ ये कि जैसे ही जहाज़ की सीढ़ियाँ लगाई गईं, वहाँ मौजूद करीब पचास कैमरामैन मक्खियों की तरह जहाज़ के चारों तरफ़ खड़े हो गए. जैसे ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री उतरे, पीछे खड़ी भीड़ भी आगे आ गई और धक्का मुक्की होने लगी. नेहरू का पारा चढ़ा तो चढ़ता ही चला गया. उन्होंने गुस्से में चिल्लाते हुए कैमरामैन के पीछे दौड़ना शुरू कर दिया. किसी एक शख़्स ने नेहरू के लिए कार का दरवाज़ा खोला. नेहरू ने गुस्से में वो दरवाज़ा बंद कर दिया और फूल के एक बड़े बूके से लोगों की पिटाई करने दौड़े. रुस्तम जी ने बहुत मुश्किल से उन्हें जीप पर सवार होने के लिए मनाया. नाराज़ नेहरू और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जीप पर राष्ट्रपति भवन गए और उनकी लंबी कार जीप के पीछे-पीछे बिना किसी सवारी के आई.
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