सुभाष चन्द्र बोस का राष्ट्र के नाम वक्तव्य (१९४३)

Courtesy All India Radio and Ministry of Information and Broadcasting


सुभाष चन्द्र बोस आज़ादी की लड़ाई के सबसे लोकप्रिय नेताओं में एक थे। गाँधी के बाद वो और नेहरू भारत के युवा वर्ग की प्रेरणा बन गए थे। क्रांतिकारी आन्दोलन में उनके जैसा नाम चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह ने ही कमाया था। आईसीएस से इस्तीफ़ा देकर वो भारत आये थे। उन्होंने और नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को वामपंथ की तरफ़ मोड़ने का प्रयास किया। उन्हें लोग नेताजी के नाम से पुकारते थे। उनके और गाँधीजी के सम्बन्धों की हमेशा गलत व्याख्या की गयी है। दोनों के बीच कोई व्यक्तिगत लड़ाई नहीं थी। दोनों एक दूसरे से बेहद प्रेम करते थे। गाँधी ने हमेशा उन्हें बेटा माना और सुभाष के लिए गाँधी पिता के समान थे। लड़ाई विचारधारा के स्तर पर थी। सुभा १९३८ में ही अंग्रेजों के खिलाफ गाँधी के नेतृत्व में आखिऱी लड़ाई छेड़ देना चाहते थे। गाँधी के मुताबिक़ वो समय मुनासिब नहीं था। दोनों का परिस्थितियों का आकलन भिन्न था। इसलिए ही सुभाष ने अलग होकर फॉरवर्ड ब्लॉक का निर्माण किया। उन्होंने देश के बाहर जाकर आज़ाद हिन्द फ़ौज़ बनाई। इस फ़ौज़ की टुकड़ियों के नाम गाँधी और मौलाना आज़ाद सरीखे नेताओं के नाम पर भी रखे गए। जब भारतीय सीमा पर वो अपने सैनिकों को सम्बोधित कर रहे थे, उन्होंने गाँधी को "राष्ट्रपिता" कहकर पुकारा। यानी गाँधी को राष्ट्रपिता का ओहदा सुभाष ने दिया था।

नेताजी जीते-जी एक मिथक बन गए थे। १९४२ में एक बार उनके निधन की ख़बर फैल गयी थी। उनके परिवार को तमाम शोक- सन्देश मिलने लगे उनमें गाँधी का पत्र भी शामिल था। लेकिन नेताजी  की मौत की खबर जल्द ही झूठी साबित हुयी। तबसे लोगों के दिल में ये यकीन बैठ गया कि नेताजी मर नहीं सकते। सही समय होने पर वो सामने आएंगे। आज भी नेताजी की लोकप्रियता का अंदाजा उनसे जुड़े तमाम मिथकों और विश्वासों से लगाया जा सकता है। पेश 1943 में नेताजी द्वारा दिया गया यह ऐतिहासिक भाषण... 
         

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