तुम नेहरू उदास हो

नीरज सिंह, १४ नवम्बर २०१७, फेसबुक पोस्ट.


14 नवम्बर 1889 इतिहास की सतरों पर पहला बाल दिवस कहा गया। 1964 में 27 मई को मौत के बाद जवाहरलाल नेहरू का यश इतिहास की थाती है। उनका अनोखापन बेमिसाल है। नेहरू में दोष ढूंढ़े जा सकते हैं। आजकल हुकूमत करती विचारधारा सब पापों की गठरी उनके सिर बांधकर इतिहास की गंदगी ढोती गाड़ियों में बिठाकर गुमनामी के रेवड़ों में धकेल रही है। नेहरू यादों और विस्मृति के जंगलों में जुगनू की तरह दमकते ही रहते हैं। वे अकेले स्वतंत्रता संग्राम सैनिक हैं जो दक्षिणपंथ के हमले का शिकार है। भारतीय इतिहास के अनुकूल पुनर्लेखन को प्रामाणिक इतिहास समझते तत्व नेहरू के मूल्यांकन को अपनी मौलिकता कहते हैं। 


आजादी की जद्दोजहद में तिलक, गांधी और नेहरू तीन उत्तरोत्तर पड़ाव हैं। दक्षिणपंथ के लाड़ले सरदार पटेल, सुभाष बोस, मदनमोहन मालवीय आदि की सहवर्ती भूमिका ही है। ‘भारत छोड़ो आंदोलन‘ के बाद नेहरू को गांधी की समझ का सम्मान करते भी उनकी आदर्शवादिता को अव्यावहारिकता कहते ठुकराना पड़ा। नेहरू ने गुरु को कठोर पत्र लिखे। उस इबारत से वे बच सकते थे। उन्होंने गांधी की मुखालफत करते भगतसिंह के पक्ष में करीब आधी कांग्रेस को खड़ा कर दिया था। सुभाष बोस के साथ मिलकर भगतसिंह के मुकदमे की पैरवी भी की। देश की बागडोर संभाली। उन पर सरदार पटेल के साथ होकर होकर भारत विभाजन का दोष थोपा जाता है। नेहरू ने योजना आयोग, भाखरा नांगल, आणविक शक्ति आयोग, भाषावाद प्रांत, सार्वजनिक उपक्रम, संसदीय तमीज और संविधान की इबारतें नायकत्व की भूमिका के साथ रचीं। कश्मीर समस्या को लेकर उनमें उलझाव भी बताया गया। पंचशील के मुखिया होकर चीन से दोस्ती और विश्वास में बड़ा धोखा खाया। कीमत देश की धरती को चुकानी पड़ी। नेहरू लोकतंत्र के रहनुमा थे। अपना व्यक्तित्व कई बार थोपने की कोशिश की। फिर पराजित होकर मासूमियत से मुस्कराते रहे।

कांग्रेस अध्यक्ष बेटी इंदिरा गांधी ने पिता को खारिज कर दिया जब केरल की सरकार को बर्खास्त करने का विवाद आया। नेहरू डाॅक्टर राजेन्द्र प्रसाद को दुबारा राष्ट्रपति नहीं उपराष्ट्रपति डाॅक्टर राधाकृष्णन को प्रोन्नत करना चाहते थे। कांग्रेस पार्टी ने सुनी। नेहरू अदब से झुक गए। दिल्ली की महती जनसभा में संचालक ने यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो को देश की तरफ से पहला पुष्पगुच्छ देने नेहरू को आमंत्रित किया। जवाहरलाल ने चेहरा लाल पीला करते कहा दिल्ली के नागरिकों की सभा में पहला पुष्पगुच्छ सौंपने का अधिकार महापौर अरुणा आसफ अली को है। यह संस्कारशीलता आज के महापौरों को उपलब्ध नहीं है। उन्हें मंत्री, सचिव और आयुक्तों के सामने ऊंची नाक रखने मना किया जाता है।

तपेदिक से तपती पत्नी को स्विटजरलैंड के अस्पताल में छोड़कर जेलों में अपनी जवानी सड़ा दी। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान खंदकों में बैठकर हेरल्ड लास्की के फेबियन समाजवाद के पाठ पढ़े। अपनी बेटी को पिता के पत्र के नाम से चिट्ठियां लिखीं। उनमें इतनी गहरी ताब थी कि बेटी उनके मरने के बाद बिना मदद के देश की सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री बनी और शहीदों की मौत पाई। नेहरू खानदान पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाले नहीं कहते कि जवाहरलाल ने अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी जयप्रकाश में ढूंढ़ा था, इंदिरा में नहीं। अटलबिहारी वाजपेयी को भी कांग्रेस में लाने लाने को थे। मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के दबाव के कारण छत्तीसगढ़ में भिलाई इस्पात संयंत्र लाकर प्रदेश को नया औद्योगिक तीर्थ दिया। उनकी ‘विश्व इतिहास की झलक‘, ‘भारत की खोज‘ और ‘आत्मकथा‘ की राॅयल्टी से नेहरू परिवार का खर्च चलता रहा। आज भी संसार में बहुत बिकती ये किताबें चाव से पढ़ी भी जाती हैं।

नेहरू में कवि, दार्शनिक और इतिहासकार है। उनकी इतिहास दृष्टि में नदियां, हवाएं और तरंगें बहती हैं। नेहरू की गंगा जलाशय नहीं है जिसकी सफाई के लिए मंत्रालय कुलांचे भर रहे हैं। उनकी गंगा बहता इतिहास है। भारत के सुदूर अतीत से भविष्य के महासागर तक संस्कारों का सैलाब लिए अनंतकाल तक बहेगी। उससे बेहतर वसीयत लेखन संसार के इतिहास में कहीं नहीं है। उनकी मौत के बाद संसद में असाधारण बौद्धिक सांसद हीरेन मुखर्जी ने कहा भी था कि मैं ऐसी वसीयत लिखने वाले लेखक की हर गलती माफ कर सकता हूं। यहां तक कि उनकी खराब सरकार को भी। नेहरू ने प्रधानमंत्री नहीं साहित्य अकादमी के अध्यक्ष की हैसियत से सोवियत रूस के सर्वोच्च नेता खु्रुष्चेव को लिखा था कि वे डाॅक्टर जिवागो उपन्यास के लेखक बोरिस पास्तरनाक को रूसी समाज की कथित बुराइयों को उजागर करने के आरोप में कोई अनावश्यक सजा नहीं दें। आॅल्डस हक्सले जैसे अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक ने लिखा जवाहरलाल का व्यक्तित्व गुलाब की पंखुड़ियों से बना है। लगता था चट्टानी राजनीति में गुलाब की पंखुड़ियां कुम्हला जाएंगी। लेकिन नहीं नहीं इन पंखुड़ियों ने तो पैर जमाने शुरू कर दिए हैं। नेहरू का स्पर्श पाकर राजनीति सभ्य हो गई है। गुरुदेव टैगोर ने उन्हें भारत का ऋतुराज कहा था। विनोबा के लिए अस्थिर दौर में सबसे बड़े स्थितप्रज्ञ थे।

निंदक उनके आसपास डोल रहे हैं। शेख अब्दुल्ला को नेहरू का अवैध भाई बताते हैं। उनके ब्राह्मण पूर्वजों में मुसलमानों का रक्त अफवाहों के इंजेक्षन डालते रहते हैं। एडविना माउंटबेटन से रसमय संबंधों में मांसलता की वीभत्स स्थितियों की अफवाहों का तंतु बुना जाता है। उन्हें काॅमनवेल्थ को रखने सहित कई समझौतों के लिए दोषी करार दिया जाता है। यह सफेद झूठ फैलाते तत्व सर्वोच्च राजनीतिक स्थिति में हैं। झूठ कह गए कि सरदार पटेल की अंत्येष्टि में नहीं गए थे। कांग्रेसी कुनबे में केवल जवाहरलाल पर हमले जारी हैं। निखालिस हिन्दू दिखाई पड़ते कांग्रेसी गांधी, मदनमोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, सरदार पटेल, लालबहादुर शास्त्री, राजगोपालाचारी वगैरह की तस्वीरें कांग्रेसियों से ज्यादा संघ परिवार खरीद रहा है।

नेहरू के सियासी और खानदानी वंशज गाफिल हैं। जवाहरलाल से बेरुख होते गए हैं। उनके लिए 14 नवंबर एक बौद्धिक भूकंप की तरह होना चाहिए जो पुरानी वर्जनाओं को नेहरू के ज्ञानार्जन के नवयुग के कारण कर सकना संभव हो। कांग्रेस इस असाधारण बौद्धिक से घबरा या उकताकर मिडिलफेल जीहुजूरियों के संकुल को बौद्धिक विश्वविद्यालय बनाए हुए है। ठूंठ से कोंपल उगाने के असंभव जतन में है। कोई तो उस महान क्रांतिकारी भगतसिंह की इबारत को पढ़ लेता जिसने कहा था कि मैं देश के भविष्य के लिए गांधी, लाला लाजपत राय और सुभाष बोस वगैरह सब को खारिज करता हूं। केवल जवाहरलाल हैं जो वैज्ञानिक मानववाद होने के कारण देश का सही नेतृत्व कर सकते हैं। नौजवानों को चाहिए नेहरू के पीछे चलकर देश की तकदीर गढ़ें। नेहरू चले गए। भगतसिंह भी। उस वक्त के नौजवान भी। वर्तमान के ऐसे करम हैं कि नेहरू अब भी उदास हैं।

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