आईसीएचआर पैनलः रोमिला थापर, इरफान हबीब आदि गए, ‘चीन्हो तो जानें’ आए

[इतिहास के खिलाफ दुष्प्रचार के लिए जरूरी है सबसे पहले इतिहास लेखन के लिए संस्थाओं को संघ के कब्जे में लाया जाए भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् मोदी सरकार का बड़ा निशाना है इसकी शुरुआत जुलाई 2014 में संघ के कैडर रहे प्रो० वाई सुदर्शन राव को परिषद् का अध्यक्ष बनाकर की गई थी हालिया हमला परिषद् के पुनर्गठन के समय किया जा रहा है सवाल यह नहीं है कि मोदी सरकार यह नियुक्तियाँ क्यों कर रही है सवाल यह है कि जो नियुक्त किये जा रहे हैं उनका इतिहासलेखन में योगदान क्या है?]

पवित्रा एस. रंगन
आउटलुक, 4 जुलाई, 2015  

“जैसे चीजें चल रही हैं, भारतीय अनुसंधान परिषद का नाम जल्द ही भारतीय इतिहास गोलमाल परिषद कर देना चाहिए। उदाहरण के तौर पर सबसे पहले पहचान की एक गड़बड़ी को लें। भारत के गजट में अधिसूचित किया गया कि किन्हीं वी.वी हरिदास को भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद का नया सदस्य नियुक्त किया गया है जो ‘कालीकट में इतिहास के प्रोफेसर’ हैं। जब इन हरिदास महाशय ने हिचकते हुए आईसीएचआर फोन करके कहा कि वह इससे बहुत सम्मानित महसूस कर रहे हैं, तब पता चला कि यह वह हरिदास नहीं हैं जिनकी अनुशंसा मंत्रालय ने की थी। इतिहास में पीएचडी वी.वी हरिदास मंगलूर विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं। लेकिन यह तो कोई दूसरे पी.टी हरिदास थे जिन्हें परिषद के लिए मनोनीत किया गया था हालांकि वह पी.एच.डी नहीं थे। ”


बाद में आईसीएचआर वेबसाइट पर उनका नाम तो सही आ गया लेकिन उन्हें सिर्फ ‘सदस्य’ लिखा गया। सोचिए, इस सूची में ‘इरफान हबीब, सदस्य’ लिखा गया होता तो किसी को कोई संदेह नहीं होता। लेकिन पी.टी. हरिदास को तो कोई जानता ही नहीं था और मीडिया में अनुमान लगाया जाने लगा कि वह कौन थे। ‘वह दरअसल भाजपा परिवार के अंग हैं,’ परिषद के एक विदा प्राप्त सदस्य चहकते हुए बताते हैं। अंततः आईसीएचआर ने अपनी सूची ताजा की और पता चला कि पी.टी. हरिदास वाकई कालीकट के एक कॉलेज में इतिहास के पूर्व विभागाध्यक्ष थे। लेकिन उनका पी.एच.डी. न होना थोड़ा चुभने वाला तथ्य था– और थोड़ी बहुत चर्चा यह भी हुई कि उनके बदले उनकी पत्नी श्रीमती हरिदास को परिषद का सदस्य बना दिया जाए जो पी.एच.डी. थीं। बहरहाल, आईसीएचआर की ताजातरीन सूची में दर्ज 18 नए सदस्यों की वजह से स‌िंधु नदी सुलगी नहीं है।

भारतीय इतिहास की शानदार शख्सियत और जवाहर लाल नेहरू विश्व‌विद्यालय में मानद प्रोफेसर रोमिला थापर इस सूची के बारे में कहती हैं, ‘मैं इन लोगों में से किसी के कामकाज के बारे में नहीं जानती। शायद मैं अज्ञानी हूं। दिलीप चक्रवर्ती को छोड़कर मैंने इनमें से किसी की कोई पुस्तक नहीं पढ़ी है।’ जुलाई 2014 में मानव संसाधन मंत्रालय ने प्रोफेसर वाई. सुदर्शन राव को आईसीएचआर का अध्यक्ष नियुक्त किया था। वह इंटरनेट के भगवा मिशनरी हैं। उनके विचार जाति व्यवस्‍था के बारे में अलबेले हैं। उनकी नियुक्ति पर तब बहुत चिंता व्यक्त की गई थी। लेकिन परिषद सदस्यों के उनके चयन ने आईसीएचआर के सचिवालय स्टाफ को भी हतप्रभ कर दिया है। कुछ सदस्यों के पास तो इतिहास में कोई डिग्री भी नही हैं। एम.डी. श्रीनिवास चेन्नई स्थित सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी हैं, पूरबी रॉय अंतरराष्ट्रीय संबंधों में प्रोफेसर हैं, मिशेल दानिनो के पास फ्रांस की इंजीनियरिंग डिग्री है जहां उनकी पैदाइश हुई थी।

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सितंबर में पुरानी परिषद की अवधि समाप्त हो रही है इसलिए सदस्य सचिव गोपीनाथ रवींद्रन ने 18 इतिहासकारों की सूची राव के पास भेजी थी। लेकिन इनमें से कोई परिषद तक नहीं पहुंच पाया। इसके बदले नामों की यह बिल्कुल नई सूची मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने चयनित की। इस सूची में कई लोगों का नाम तो पहले किसी ने सुना ही नहीं था।

इंडियन हिस्टॉरिकल रिव्यू उन कुछ जर्नल्स में है जिन्हें प्रतिष्ठित थॉमसन रॉयटर्स सूची में स्‍थान मिला है। इंडियन हिस्टॉरिकल रिव्यू को इस उखाड़पछाड़ का नतीजा भुगतना पड़ रहा है। नई आईसीएचआर टीम के पांच लोगों को इस जर्नल के संपादकीय बोर्ड का सदस्य बनाया गया है, और बाकी 13 को उसकी सलाहकार कमेटी में डाला गया है। जबकि पिछली 24 सदस्यीय कमेटी में रोमीला थापर, मुशीरुल हसन और इरफान हबीब जैसे प्रख्यात इतिहासकार तथा देश-विदेश के विश्वविद्यालयों के कम से कम 10 प्रतिष्ठित विद्वान शामिल थे। उद्देश्य यह ‌था कि कठोर विद्वत-समीक्षा के जरिये सदस्य ‌इतिहास के विभिन्न विषयों पर जर्नल में लिखने के लिए उभरते हुए प्रतिभाशाली इतिहासकारों का चयन कर सकें। लेकिन अब, पूर्व परिषद सदस्य और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वी.पी. साहू के अनुसार, ‘रिव्यू परिषद की महज अंदरूनी पत्रिका बनकर रह गया है।’

कमेटी के 13 सदस्यों में सिर्फ 4 नाम परिचित हैं। एपीग्राफिस्ट, सच्चिदानंद सहाय अंकोरवाट मंदिर के पुनरुद्धार के लिए जाने जाते हैं। लेकिन अन्य तीन को तो उनसे संबंधित विवादों के लिए ज्यादा जाना जाता रहा है। एनडीए-1 के शासन काल में मीनाक्षी जैन अपनी विवादास्पद एनसीईआरटी पाठ‍्यपुस्तक के लिए चर्चा में आई थीं जिसे रोमिला थापर की पुस्तक की जगह प्रकाशित किया गया था। मिशेल दानिनो ने भारतीय आर्यों के आव्रजन सिद्धांत के खिलाफ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मनोनुकूल लेखन किया है। उन्होंने सरस्वती नदी पर भी ‌पुस्तक लिखी है और वेदों के पुनः तिथि निर्धारण के पक्ष में हैं। पूरबी रॉय नेताजी सुभाषचंद्र बोस पर अपनी विवादास्पद पुस्तक के‌लिए चर्चित हैं। अधिकतर अन्य सदस्य, यदि इतिहास के प्रोफेसर हुए भी तो, आरएसएस के विभिन्न आनुषंगिक संगठनों, जैसे तिरुअनंतपुरम स्थित भारतीय विचार केंद्रम, के सदस्य हैं। नारायण राव और ईश्वरशरण विश्वकर्मा संघ स‌मर्थित अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के पदाधिकारी हैं।

राव की अध्यक्षता ने कई त्यागपत्र प्रेरित किए। त्यागपत्र देने वालों में रवींद्रन भी हैं। वह एक मात्र सदस्य हैं जिन्हें सरकार ने मनोनीत नहीं किया था। राव के साथ 8 महीने काम कर चुके पूर्व परिषद सदस्यों के अनुसार उनके सभी निर्णय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को खुश करने वाले और संघ सिद्धांतकारों के कृपाकांक्षी होते हैं। नियुक्तियों के अलावा मंत्रालय चेयरमैन राव की तत्पर सहायता से कई सिलसिलेवार परिवर्तन कर रही है ताकि सरकार ‘इतिहास गढ़ने’ के लिए परिषद पर पूर्ण नियंत्रण रख सके। इसके लिए अनुसंधान और वित्तीय सहायता के नियम भी बदले जा रहे हैं।

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